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गुरुदेव के साथ दिव्य सत्संग - मौन से आत्म-बोध

हाल ही में एक सत्संग में, हमारे श्रद्धेय गुरुदेव, परम पूज्य विश्वगुरु महामंडलेश्वर परमहंस श्री स्वामी महेश्वरानंद पुरी जी महाराज ने मौन, अर्थात् आध्यात्मिक चुप्पी के अभ्यास पर गहन अंतर्दृष्टि साझा की।

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हमारे परमप्रिय गुरुदेव ने समझाया कि मौन आत्म-नियंत्रण सीखने और हमारे विचारों को रूपांतरित करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।

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उन्होंने सिखाया, "अब मौन के द्वारा अपने भीतर के अध्यायों को पढ़ने का समय है।" यह शांत और गहन आत्म-निरीक्षण का समय है।

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परमप्रिय गुरुदेव ने हमें अपने भीतर देखने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि प्रत्येक कर्म और विचार अभिलिखित होता है।

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आत्म-अन्वेषण का यह अभ्यास हमें स्वयं को ईमानदारी से देखने में सहायता करता है। हम पूछ सकते हैं: मैं कितनी बार दयालु और क्षमाशील था? मैं कितनी बार क्रोधित या ईर्ष्यालु था?

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यह जागरूकता स्वीकृति, सीखने और दयालुता का एक निरंतर अभ्यास है।

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सच्चा मौन केवल बाहरी रूप से शांत रहना नहीं है।

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मौन का अर्थ भीतर स्पष्टता प्राप्त करना है।

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अपनी चित्तवृत्तियों (मानसिक उतार-चढ़ाव) का निरीक्षण करके, हम उन्हें शुद्ध करना आरंभ कर सकते हैं।

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मौन का अभ्यास करने के लाभ बहुत अधिक हैं। यह हमारी इच्छाशक्ति को मजबूत करता है और मानसिक स्पष्टता लाता है।

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मौन हमें समस्याओं का समाधान खोजने और नई प्रेरणा देने में मदद कर सकता है।

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मौन के माध्यम से, हम आंतरिक शक्ति का निर्माण करते हैं और जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक और शुद्ध दृष्टिकोण विकसित करते हैं।

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हमारे परमप्रिय गुरुदेव का ज्ञान और कृपा हमारे आध्यात्मिक मार्ग पर सदैव हमारा साथ दे। हरि ॐ

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