
ओम आश्रम भक्ति में सराबोर – निर्जला एकादशी का आनंदमय उत्सव
निर्जला एकादशी हिंदू पंचांग के सबसे पवित्र और आध्यात्मिक रूप से फलदायी व्रतों में से एक है। भीषण गर्मी के दौरान पड़ने वाली यह एकादशी अद्वितीय है—भक्तगण भगवान विष्णु का सम्मान करने और कल्याण, पवित्रता और मोक्ष के लिए उनका दिव्य आशीर्वाद पाने हेतु बिना भोजन और पानी के व्रत रखते हैं।
राजस्थान में, महिलाएँ इस पवित्र परंपरा में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। वे रंग-बिरंगे परिधानों में सजकर, मंदिरों में भजन-कीर्तन गाने, आनंद से नृत्य करने और वातावरण को भक्तिमय ऊर्जा से भरने के लिए एकत्रित होती हैं। उनकी सामूहिक आस्था दिव्य स्पंदनों से युक्त वातावरण बनाती है। यह ओम आश्रम के शिव मंदिर में भी स्पष्ट रूप से दिखाई दिया।

पूजा और आरती में भाग लेने के बाद, महिलाएँ पीपल के पेड़ की जड़ों में जल अर्पित करती हैं, जो जीवन, भक्ति और विनम्रता का प्रतीक है।

शिव मंदिर की वेदी पर, गहरी भक्ति और विनम्रता की एक कहानी सामने आती है: भगवान विष्णु ने 1,008 कमल के फूल चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा की। जब शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए चुपके से एक कमल हटा दिया, तो विष्णु ने अपनी आँख निकालकर—उस गुम हुए कमल की जगह पर—भेंट को पूरा किया। भक्ति का यह परम कार्य उनकी अटूट आस्था का प्रतीक था।

इस शुभ दिन पर, भक्तगण भगवान विष्णु को ताजे फूल, घर की बनी मिठाइयाँ, चंदन, तुलसी के पत्ते और देसी घी का दीया चढ़ाते हैं। तुलसी हर प्रसाद में अनिवार्य है, क्योंकि यह भगवान विष्णु को विशेष रूप से प्रिय है।

इस एकादशी को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, दूसरे पांडव भीम अपनी अत्यधिक भूख के कारण नियमित रूप से उपवास नहीं कर पाते थे। ऋषि व्यास ने उन्हें केवल एक निर्जला एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया, जो उन्हें अन्य सभी एकादशियों का पुण्य प्रदान करेगा। तभी से इस दिन का बहुत महत्व है।

ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता है, तो केवल निर्जला एकादशी का व्रत करने से उसे सभी के बराबर पुण्य मिलता है। ऐसी है इस आध्यात्मिक अनुशासन की शक्ति।

🌿 निर्जला एकादशी का आशीर्वाद आपके जीवन में भक्ति, शक्ति और पवित्रता लाए। हरि ॐ। 🙏