
दीवाली पर ॐ आश्रम की दिव्य आभा
जब हमारे समुदाय ने प्रकाश के सुंदर पर्व, दीवाली को मनाने के लिए एकजुट होकर उत्सव मनाया, तब ॐ आश्रम प्रकाश से जगमगा उठा।
हमारे प्रिय गुरुदेव, परम पूज्य विश्वगुरु महामंडलेश्वर परमहंस श्री स्वामी महेश्वरानंद पुरी जी महाराज के सान्निध्य में इस उत्सव को मनाना एक विशेष सौभाग्य था।

यह दिन सत्संग, मनमोहक प्रकाश और उत्सवपूर्ण वातावरण से परिपूर्ण था।


यह प्राचीन पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव है। हमने अनगिनत दीये (दीपक) प्रज्वलित कर और भगवान् राम के अपने राज्य में लौटने की कथा का स्मरण कर इस परंपरा का निर्वहन किया।

प्रत्येक लौ आशा का प्रतीक है, और यह इस बात का स्मरण कराती है कि अच्छाई एवं प्रकाश की सदैव विजय होगी।


हमारी दिव्य वंश-परंपरा (परंपरा) के लिए दीवाली का एक बहुत ही विशेष महत्व है। इसी पावन दिवस पर हमारे प्रिय सतगुरु, श्री दीप नारायण महाप्रभु जी भगवान् ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया था। उनका जन्म 8 नवंबर, 1828 को ब्रह्म मुहूर्त की पवित्र बेला में हुआ था।

Jश्री दीप नारायण महाप्रभु जी भगवान् के जन्म से ठीक पहले, उनकी माताजी, श्रीमती चंदन देवी जी को एक दिव्य स्वप्न आया था।

अपने दिव्य स्वप्न में, उन्होंने एक अविश्वसनीय दृश्य देखा। सर्वप्रथम, भगवान् विष्णु अपने श्वेत हाथी, ऐरावत पर प्रकट हुए। उन्होंने अपने पवित्र प्रतीक: शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए थे।

इसके पश्चात्, उन्होंने भगवान् शिव को अपने वृषभ, नंदी पर विराजमान देखा, जिनकी जटाओं से पवित्र गंगा नदी प्रवाहित हो रही थी। अंत में, उनके जन्म के क्षण में ही, महाप्रभु जी ने उन्हें दिव्य बालक, कृष्ण के रूप में दर्शन दिए।


हमारे सत्संग के दौरान, हमने उनके जन्म से जुड़े चमत्कारों की कथाओं को साझा किया—कैसे गाँव में तेल के दीपक स्वयं ही प्रज्वलित हो उठे और आकाश से श्वेत पुष्पों की वर्षा हुई। यह ओजस्वी इतिहास हमारे इस उत्सव को और भी गहन बना देता है।

दीप प्रज्वलन समारोह सुंदर और भावविभोर करने वाला था। आश्रम को सैकड़ों टिमटिमाती दीप-शिखाओं से प्रकाशित देखकर सभी को गहरी शांति और एकता की अनुभूति हुई।









हम उन सभी को धन्यवाद देते हैं जो हमारे इस पवित्र स्थान और हमारे हृदयों को प्रकाश एवं आनंद से भरने के लिए हमारे साथ सम्मिलित हुए।

यह प्रकाश हम सभी के भीतर सदैव देदीप्यमान रहे। हरि ओम।




