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विश्वगुरुजी को ॐ आश्रम के निर्माण के लिए पुरस्कार मिला

२३ सितंबर २०२३ को, पाली, राजस्थान में श्री रूप रजत गुरु सेवा समिति धर्मार्थ संगठन ने विश्वगुरु परमहंस स्वामी महेश्वरानंद जी को ॐ आश्रम के निर्माण में उनके जीवन भर के कार्य के लिए एक पुरस्कार प्रदान किया!

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।। सादर अभिनन्दन् ।।

अध्यात्म आत्मा का आलोक है, इसीलिए अलोकिक है। प्रणवाकार ओम आत्मा से परमात्मा का सह संबंध बनाने वाला सहज योग है। ये मंगल ध्वनि एक आव्हान है स्वयं का, जो इससे जुड़ गया विश्व तो क्या उसका सप्तलोक हो गया । जगदगुरु महामण्डलेश्वर स्वामी महेश्वरानन्दजी म. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। ओम आकार के प्रति आपका आग्रही होना व्यर्थ नहीं है। आपका विश्व भ्रमण जन जन में चैतन्य भाव भरने का अभियान है ।

मरुधरा में जाडन नामक पुण्य स्थली को चुनकर आपने जो परिकल्पना सार की है वो वहां के ओमाकृत - परिसर में प्रत्यक्ष दिखाई देती है। आपने वहां स्कूल, गौशाला, सत्संग भवन आदि के साथ जो रचनात्मक गतिविधिया आविष्कार की हैं। वो आपके मन मानस के सौर मण्डल की प्रज्ञा सम्पन्न भूमा का परिचय देती है। विभूता को विराटता तक ले जाना हर सदन्यासी का पुरुषार्थ है, आपने वहीं किया है। आपके व्यक्तित्व का समग्न आंकलन अवलोकन तो असम्भव है लेकिन जो शब्द पुष्प यहां प्रस्तुत हैं वो अंशमात्र होकर भी अखत है। अनादि निधन है क्योंकि वैराग्य सम्पन्न आत्मा का प्रत्येक पल जन कल्याण लोक कल्याण का उत्सव है।

परम पूज्य स्वामीजी का विश्व व्यापि संवाद संचेतना का स्वर घोष है जो प्रणव के यथार्थ परिचायक है। आपकी यात्रा जितनी बाहरी है, उससे कहीं अधिक अन्तर यात्रा है। इस यात्रा में जो भी पड़ाव है वों एक नए क्षितिज को छूने की तैयारी है। आपका अवदान विश्व की मानवता को ऐसा वरदान है जिसके कण-कण में विश्व मंगल का अलोकिक पर्व समाहित है।

हमारे लिए अति प्रसन्नता का विषय है कि स्वामी महेश्वरानन्दजी म. हमारे अपने है। इनका जन्म 15 अगस्त 1945 को रुपावास जिला पाली राजस्थान में हुआ। योग साधना और अनेक कठिन साधनाओं को साधते हुए आपकी आपने अपना अधिकांश समय प्रार्थना और ध्यान में बिताया । मात्र 13 वर्ष की आयु में अपने चाचा स्वामी माधवानंद से मिलने के लिए आप निपाल माताजी की आज्ञा से गये। वहीं पर आपने लगातार योग और संन्यास को निकट से देखा और आप संन्यासी हो गए।

आपके गुरुवंश की प्रारम्भ कड़ी में पूज्य श्री अलखपुरीजी का नाम आता है। वे श्री देवपुरीजी के गुरु थे। देवपुरीजी को उनके शिष्य भगवान शिव का अवतार मानते थें। 19-20 वी सदी में कुछ समय के लिए भारत और राजस्थान के कैलाश गांव आश्रम में रहे लेकिन परमहंस स्वामी माधवानन्दजी ने 20 साल से अधिक समय तक अपने अग्रज संतों के साथ अपनी साधना का क्रम उत्तरोत्तर जारी रखा। इन सब बातों का प्रभाव हमारे श्रद्धेय श्री महेश्वरानन्दजी म. पर भी पड़ा।

आपकी शिक्षाओं के मुख्य बिन्दु हैं शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और अध्यात्मिक स्वास्थ्य के प्रति सम्मान आप कहते है कि धर्म एक ही हैं मानवता, किसी को यह धर्म नहीं बदलना चाहिए बल्कि अपने आपको मानव धर्म का ही अनुयायी मानते हुए अपना जीवन सार्थक करना चाहिए। ऐसे सतकर्म प्रचारक स्वामी श्री महेश्वरानन्दजी का सम्मान करते हुए श्री रूप रजत गुरु सेवा समिति पाली राजस्थान अपने आपको सम्मानित अनुभव करती है और यह कामना करती है कि आपका सान्निध्य सदैव प्राप्त होता रहे। आपका स्नेह, आपका आगमन होता रहे और विश्व के कल्याणार्थ जो मिशन आपने प्रारम्भ किया है वह अपने आप में सम्पूर्णता को प्राप्त करें। सादर अभिनन्दन, सादर प्रणाम ।

अभिनन्दनकर्त्ता

श्री रूप रजत गुरु सेवा समिति

Lectures on the Chakras

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